श्री सदगुरू साईनाथ कीर्ति माला।

दोहा
श्रध्दा सबुरी सिकाई शिर्डी सूत, जानत सकल जहान |
धन्य-धन्य सत्गुरु देवा, संकट हर साईं महान || १

श्री सदगुरू साईंनाथ कीर्ति गान ।
श्री गणनायक बुद्धि प्रदायक ।
साईं सत्चरित्र सूनाने कृपा करें देवा ।।
ऊँ साईं श्री साईं जय जय साईं ।
ऊँ साईं श्री साईं जय जय साईं ।।
श्री साईं साक्षात श्री दत्त तुम हो ।
श्री गुरु पद श्री वल्लभ तुम हो ।।
नरसिंह सरस्वती प्रसादि तुम हो ।
सब मज़हब के आचार्य तुम हो ।।
भक्तगण प्रिय परमात्मा तुम हो ।
श्री चक्रधारी गिरिधर तुम हो ।।
अनुग्रह स्वीकार किया हेमाडपंत जो ।
खुद ही सूनाई चरित्र उस दास को ।।
किया इशारा घोडा पाए वो ।
चांद पाटिल खुदा माना तुम को ।।
भक्त महाल्सा आगवन देख तुम को ।
आचरज में साईं नाम से भुलाया तुम को ।।
वही नाम स्थायी हुई तुम्हारा तो ।
वर दायक हुआ ये नाम सबको ।।
कलयुग में नहीं दुजा सन्तुलित तुम को ।
असंभव को संभव करने में साहसी तुम हो ।।
तुम बिन अधुरा हुआ शिर्डी गाँव तो ।
सुनी होगयी यह वैकुण्ठ धरती वो ।।
नीम पेड तले हुआ गुरुस्थान तुम्हारा जो ।
वहीँ प्रतिष्ठापित कि केल्कर ने तुम्हारे पादुकाओं को ।।
गंगा यमुना तुम्हारे पदों से उभरा जो ।
दासगणु स्मरण से अधिक हुआ वो ।।
पानी से जलाकर दीपक को ।
उस ज्योत किरण से मिठाई सबके अज्ञानता को ।।
हिन्दू मुस्लिम का भेद भाव न माना तुम तो ।
राम रहीम एक ही है कहा तुम तो ।।
श्रीराम नवमी दिवस को ।
किया प्रबंध चन्द्रोत्सव को ।।
धुनि से मिली शिक्षा तेरे ही हाथों को ।
आग मे गिरते बच्चे की रक्षा मे तुम को ।।
हमारे पाप करमों का निवारक तुम हो ।
नित् बिन भिक्षा मांगने से कुछ खाते हो ।।
बैझामाई ने माना परमात्मा तुम्हें तो ।
होकर प्रसन्न सदगति दी उसको ।।
सभी जीवित प्राणियों में वास करते हो ।
कुत्ते की रुप में आकर खाई जली रोटी को ।।
सुन्दर शैयन मे शेषशायी लगे तुम तो ।
भव्य दृश्य देखा परमानंद हुए हम सबतो ।।

लोगों ने समझा पागल नानावली को ।
पर वही प्यारा पसंदीदा हुआ तुम्हारा वो ।।
वरुणदेव माना तुम्हारे बात को ।
अग्नि देव ने भी पालन किया दिया वचन जो ।।
पँच तत्व समाया अवतार हो ।
तुमसा बेजोड़ कोई और नहीं है तो ।।
मुले शाश्त्री पाया तुम मे अपने गुरु को ।
आदरणीय मान गुरु दक्षिण दी तुम को ।।
तुम्हें मुस्लिम समझ बैठा तमदा वैध तो ।
तुम मे देख राम इलाज किया वो ।।
पहचान कर भीमाथी का रोग को ।
तुमने दुर किया उसके पीडा को ।।
काकाजी के कष्ट दुर किया तुम्ही तो ।
दिव्य विचित्र लीलाएं है तुम्हारे तो ।।
शक्कर खाना छोड़ दी थी चोल्कर ने तो ।
मिलने आया वो उसे दी मिश्री खाने को ।।
ब्रह्म ज्ञानी परब्रह्मा तुम हो ।
भव भय मिठाई सदगुरु तुम हो ।।
जब साठे ने पाढ कि गुरुचरित्र को ।
सपने मे दिया दर्शन उसको ।।
हेमांड तुम्हारे आदेश पर मिलने गये शामा को ।
दिव्य लीला समझ आई जब उसको ।।

शंका न बसे हर्ष मिले सबको ।
श्रद्धा सबुरी ही दक्षिणा मांगते हो ।।
भक्त कोटि के कृपालु दयानंद स्वामी हो ।
श्रवण माह मे तेरे नाम जपते आएंगे दर्शन पाने को ।।
बाबा आदेश ब्रह्म आदेश मानकर तो ।
दासगणु मिलने गये ककाजी के निवास को ।।
नौकरानी कि गीत में सूनी वेदांत को ।
चित्र वर्णन मे दुर की उनके शंका को ।।
द्वारकामाई के गोद में बैठा जो ।
समस्याओं का हल तुरंत ही मिलता उसको ।
सर्पदंश से शामा दौड़ आया तो ।
तेरा शब्दावली बना मंत्र और बचाया उसको ।।
बकरी कि बलि देने कहा दीक्षित को ।
गुरु आज्ञ मानकर बलि देने हुआ ब्राह्मण वो ।।
जिन भक्तजन को सब कुछ तुमही हो देवा ।
आत्म बल बनकर हमेशा साथ दी उन्हें देवा ।।
व्यापार विस्तार कि बात कहा दामुने तुमसे देवा ।
भलाई सोच कर विस्तार न करें कहा तुम देवा ।।
सन्तान प्राप्ति कि विनती की जिस ने तुमसे देवा ।
सन्तान प्राप्ति कराई हे साईं माँ देवा ।।
मिर्गी रोग से बाधित पिडतले पुत्र को देवा ।
देख इक नजर रोग निवारण किया तुमने देवा ।।
दिया तीन रुपैया पिडतले को तुमने देवा ।
प्रेम से उसे बुलाया स्वामी समर्थ तुम देवा ।।
विष्णु सहस्रनाम भी वेद है कहा तुमने देवा ।
उसके महत्व शामा को सूनाई तुमने देवा ।।
खापडे श्रीमती सेवा से प्रसन्न होकर तुम देवा ।
गुरु शिष्य संबंध अधिक गेहरा किया तुमने देवा ।।
शामा सप्त श्रींगी प्रार्थना पुरती करने देवा ।
तुम्हारा आदेश समझकर वाणीपुरम आया देवा ।।
वहाँ वैध्या अपनी कहानी सुनाई शामा को देवा ।
ये समझ वैध्या कुद शिर्डी मे है देवा ।।
संयासी सदगती पाए जो शरण तुमहारे आए देवा ।
मालकर नुलकर को मोक्ष प्रदान की तुमने देवा ।।
बाघ प्राण त्यागा दर पे तेरे देवा ।
जमन मरण के दाता तुमही हो देवा ।।
ज्ञानी हो या अज्ञानी हो देवा ।
जो सदगुरु चरण में ही शरण अनुरक्त देवा ।।
गुरु सेवा कर आदर्श गुरु बने तुम देवा ।
मार्गदर्शक जब हो तुम हमें चिंता क्यूँ होये देवा ।।
रामगिरि बुआ को वाहन चालक बनकर तूमने देवा ।
पहुंचाया जलगाँव से जुमेर तुमही तो देवा ।।
प्रसव वेदना तडपते मैना ताई को देवा ।
ऊदी आरती से उसके पीडा दुर किया तुमने देवा ।
सत्य नित्य ऊदी ही है कहा तुमही देवा ।
सर्व रोग निवारण कर दिखाये सबको तुमने देवा ।
तुम ऊदी से विवेक सिखाया सबको तुमने देवा ।
तुमको दिया दक्षिणा थो वैराग्य दी हमें तो देवा ।।
टक्कर मन मे चुपि बात को ठीक ऊह किया तुम तो देवा ।
सर्वज्ञ है तु सिद्ध किया जग को तुमने देवा ।।
भुली प्रतिज्ञा याद दिलाई उसको तुमने देवा ।
श्री दत्ता तुमही सिद्ध कर दक्षिणा स्वीकार उससे देवा ।।
धाएं बाएं तात्या महाल्सापति दोनों तुम्हारे संग देवा ।
रंगीन छतरी लेकर निमोणकर घुमाये तुम संग चलते देवा ।।
अनन्त दृश्य चावड़ी उत्सव तेरा जो देवा ।
वर्णन न कर पाए आदिशेष भी तो देवा ।।
तेरे हाथ कलछा बनाकर पकाया भोजन को देवा ।
तेरे पकवान कि ढंग आश्चर्य हुए सब देवा ।।
अमृत समान बना भोजन पकाया जो देवा ।
भाग्य में जिसे था काया तेरे स्वादिष्ट भोजन को देवा ।।
कृष्ण क्या नही जनता गीता उसने कहा जो देवा ।
परि प्रश्न का अर्थ समझाया नाना को तुमने देवा ।
एक भी भाषा नही सचमें तुम न जानते हो देवा ।
गृहों मे निवास करें तत्वदर्शी तुभ हो देवा ।।
मुरलीदर मंदिर स्थापन कि बुटी ने जो देवा ।
रहा सिद्ध तेरा ही मंदिर जैसा वो देवा ।
ज्ञानेश्वरी पाठ का विचार किया देव ने देवा ।
स्वप्न में उसके दिख कर आशिर्वाद दिया तुमने देवा ।
लीलाएं तेरा समझ नही पाते हम तो देवा ।
अनन्तकाल निमर्लता देवत्व तुम हो देवा ।।
स्वर्ग से धरती पर आए तुम देवा ।
दीनों के रक्षक तुमही तो हो देवा ।।
सर्वेसर्वा शरणागत चाहते जो देवा ।
मुक्ति मार्ग उन्हें दिखाने तुम हो देवा ।।
भगवान समझ पुजा लक्ष्मी बाई तुम को देवा ।
प्रसन्नता से नौ सिक्के दिए उसको तुमने देवा ।।
नव्विधा भक्ति का यही उदाहरण कहा तुम तो देवा ।
जाँचकर मुक्ति हासिल करने कहा तुमने देवा ।।
माँ को दिया वचन निभाने तुमने देवा ।
तातया कि प्राण बचाई तुमही ने देवा ।।
बुटि मंदिर तुम्हारा ही मंदिर है कहकर देवा ।
बैयाजी के गोद गिर पड़े तुम तो देवा ।।
विजयदशमी महा पर्व दिवस को देवा ।
साईं बाबा महा समादि हुए तुम तो देवा ।।
तु अनन्त अमरजीवी क्यूँ शरण दी मृत्यु को देवा ।
अब कौन है इस धरती पर सहारा दे हमको देवा ।।
स्वप्न मे प्रकट होकर कहा दासगणु को तुमने देवा ।
फुलों से पुजैं तुमें देवा ।।
नित्य आरती रोक दिया था जोग थो देवा ।
प्रकट हुए सामने जोशी के आरती न रोके कहा देवा ।।
बाला साहेब, साठे, उपासनी बाबा ने देवा ।
कि अन्तिम धार्मिक क्रियाओं को देवा ।।
समादि से ही किया सर्व कार्य को तुमने देवा ।
नित्य सत्य चिरंजीवी तुम तो देवा ।।
सारे संसार में बस गए तुम तो देवा ।
विश्वनाथ बन कृपा दृष्टि हम पर डाले तुम तो देवा ।।
शिर्डी प्रवेश से दुख हर जाते कहा तुमही तो देवा ।
हर जगह हुँ मैं यह भी कहा तुमही ने देवा ।।
काका के ग्रह पर सूनी नवनाथ चरित्र को देवा ।
दीक्षित ने सन्देह बताई शामा को देवा ।।
सूनकर शामा उनके सन्देह को देवा ।
श्री साईं नाम ही हरि नाम है बताया उनको देवा ।।
जब असन्तुष्ट हुए विवरण से दीक्षित तो देवा ।
फाकडे को बेझ उनके सन्देह दुर किया तमही तो देवा ।।
कुछ नहीं जानता जैसे रहते हो तुम तो देवा ।
हुआ कहीं पहले कभी वो कबर हमें सूनाते हो देवा ।।
काशी यात्रा कि बात बताई शामा तुमको देवा ।
गया तिर्थ में रहुँगा तुमसे पहले कहा उसको तुम देवा ।।
विचित्रता है दीक्षित तुम्हारे पास आए वो देवा ।
लँगड़ापन से मुक्त किया उसको तुमने देवा ।।
वादा किया निभाया तुम तो देवा ।।
मृत्यु के बाद अपने पास बूलाकर उसको देवा ।।
सकल देवताओं सत्स्वरूप तुम हो देवा ।
हो पाक जीवी ज्ञानज्योति तुम हो देवा ।।
तुमने दी शिक्षा जहां सदगुरु देवा ।
बैठा शिष्टाचार की मूरत बन तु वहां देवा ।।
हमें भले-बुरे का आभास कराया तुमने देवा।
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया तुमने देवा ।।
अपनी शिक्षा के तेज से, हमें आभा मंडित कर दिया देवा ।
अपने ज्ञान के वेग से, हमारे उपवन को पुष्पित कर दिया देवा ।।
तेरे नाम स्मरण से पार कर पाते दुख के सागर को देवा ।
तेरे गुणगान से होए नित्य कल्याण सबके जीवन मे देवा ।।
सत्चरित्र पारायण से सर्व सौभाग्य मिलता सबको देवा ।
गुरु चरित्र नाम जाप से मिले आयुर आरोग्य सबको देवा ।।
सब भक्तन के जीवन में नित सब शभ हो कृपा करें देवा ।
ये दिव्य कीर्तन गुरुदेव तेरा प्रसाद है सबको देवा ।।
श्री सच्चिदानंद सदगुरू साईनाथ महाराज की जय ।।

चौपाई
जय दत्तात्रेय की, जय अंगद साईं महान ।
पाण्डूरंग विठ्ठल जय रुक्मिणी की, सदा करहि कल्याण ।।
बंदीमोचन सदगुरुवर, गुरुवार वरमान ।
ध्यान धरै भक्त पावत निश्चय पद निर्वान ।।
जो यह पाठ पढेन नित, माधवसाई कहे विचारि ।
पडे न संकट ताहि तन, साखी हैं शिर्डी मुरारी ।। २

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